Sadguru Dham https://sadgurudham.com Sadguru Dham Fri, 13 Dec 2024 10:38:34 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://sadgurudham.com/wp-content/uploads/2024/02/cropped-Sadguru-dham-final-logo-1-32x32.png Sadguru Dham https://sadgurudham.com 32 32 सद्गुरु के प्रगटोदिवस पर नांगलोई आश्रम में दिखी धूम https://sadgurudham.com/there-was-excitement-in-nangloi-ashram-on-the-day-of-sadhguru-appearance/ https://sadgurudham.com/there-was-excitement-in-nangloi-ashram-on-the-day-of-sadhguru-appearance/#respond Fri, 13 Dec 2024 10:35:19 +0000 https://sadgurudham.com/?p=2035 दिल्ली की सद्गुरु धाम आश्रम नांगलोई ऐसी जगह है। जहां सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज के 75वें प्रगटोदिवस की धूम देखने को मिली। 06 दिसंबर से शुरू हुए इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में 08 तारीख को सद्गुरु का जन्मोत्सव मनाया गया। इसमें देश-विदेश की शामिल हुई कई हस्तियों ने सद्गुरु को उपहार भेंट करते हुए उन्हें बधाई भी दी। वहीं इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी देखने को मिला। जहां स्कूली बच्चे अपनी कला प्रदर्शन के जरिए लोगों के मन मोहने में सफल रहें।

]]>
https://sadgurudham.com/there-was-excitement-in-nangloi-ashram-on-the-day-of-sadhguru-appearance/feed/ 0
सद्गुरु के जन्मोत्सव पर झूमते हुए दिखा सद्विप्र समाज https://sadgurudham.com/sadvipra-community-seen-dancing-on-sadhgurus-birth-anniversary/ https://sadgurudham.com/sadvipra-community-seen-dancing-on-sadhgurus-birth-anniversary/#respond Fri, 13 Dec 2024 10:29:19 +0000 https://sadgurudham.com/?p=2029 साल में एक बार आने वाले सद्गुरु के प्रगटोदिवस का इंतजार हर सद्विप्र को होता है। वह इस खुशनुमा पल का साक्षी बनना चाहते हैं। इसलिए वह जहां कही भी रहें,  उनके द्वारा स्वामी कृष्णानंद जी महाराज के जन्मोत्सव को जरूर मनाया जाता है। सद्विप्रों की आस्था का ऐसा ही नजारा छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। जहां सद्विप्र समाज सेवा अकलतरा के सदस्यों ने सद्गुरु के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में संध्या पाठ, हवन पूजन औऱ पान परवाना संकीर्तन का आयोजन करवाया गया। इस दौरान प्रसाद वितरण की व्यवस्था भी की गई। वहीं छत्तीसगढ़ के कुछ सद्विप्र इस अवसर पर जय गुरुदेव का उद्घोष करते हुए नाचते हुए दिखे।

साल में एक बार आने वाले सद्गुरु के प्रगटोदिवस का इंतजार हर सद्विप्र को होता है। वह इस खुशनुमा पल का साक्षी बनना चाहते हैं। इसलिए वह जहां कही भी रहें,  उनके द्वारा स्वामी कृष्णानंद जी महाराज के जन्मोत्सव को जरूर मनाया जाता है। सद्विप्रों की आस्था का ऐसा ही नजारा छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। जहां सद्विप्र समाज सेवा अकलतरा के सदस्यों ने सद्गुरु के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में संध्या पाठ, हवन पूजन औऱ पान परवाना संकीर्तन का आयोजन करवाया गया। इस दौरान प्रसाद वितरण की व्यवस्था भी की गई। वहीं छत्तीसगढ़ के कुछ सद्विप्र इस अवसर पर जय गुरुदेव का उद्घोष करते हुए नाचते हुए दिखे।

]]>
https://sadgurudham.com/sadvipra-community-seen-dancing-on-sadhgurus-birth-anniversary/feed/ 0
पटियाला: सद्गुरु के आशीर्वचन का आयोजन https://sadgurudham.com/patiala-sadhgurus-blessings-organized/ https://sadgurudham.com/patiala-sadhgurus-blessings-organized/#respond Mon, 02 Dec 2024 13:11:17 +0000 https://sadgurudham.com/?p=2016 पंजाब के पटियाला में सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज के आशीर्वचन का आयोजन किया गया। इस दौरान हवन यज्ञ के साथ पूजन की व्यवस्थी भी की गई। सद्विप्र समाज के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में लोगों को साधना की महत्ता को समझने का मौका भी मिला।   

]]>
https://sadgurudham.com/patiala-sadhgurus-blessings-organized/feed/ 0
जालंधर: सद्गुरु के आशीर्वचन का आयोजन https://sadgurudham.com/jalandhar-celebration-of-blessings-of-sadhguru/ https://sadgurudham.com/jalandhar-celebration-of-blessings-of-sadhguru/#respond Mon, 02 Dec 2024 13:09:06 +0000 https://sadgurudham.com/?p=2001 पंजाब के जालंधर में 24 नवंबर को सद्गुरु के अमृत आशीर्वचन का आयोजन किया गया। श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम में आशीर्वचन के अलावा भजन कीर्तन, हवन यज्ञ, ब्रह्म दीक्षा के साथ लंगर की व्यवस्था भी की गई। 24 नवंबर से आयोजित इस प्रोग्राम को लेकर सद्विप्र समाज के लोगों में खास उमंग भी देखने को मिली। इस दौरान सद्गुरु के आगमन पर उनका ढोल नगाड़ों से स्वागत किया गया।

]]>
https://sadgurudham.com/jalandhar-celebration-of-blessings-of-sadhguru/feed/ 0
धर्मो रक्षति रक्षित: https://sadgurudham.com/dharma-rakshati-rakshati/ https://sadgurudham.com/dharma-rakshati-rakshati/#respond Mon, 02 Dec 2024 13:00:08 +0000 https://sadgurudham.com/?p=1998 ज्ञान, कर्म, भक्ति और योग को परिभाषित करने वाले श्रीमद्भागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ है। जिसमें धर्म और अर्धम की व्याख्या की गई है। इस शास्त्र में कौरव और पांडवो के साथ कुरुक्षेत्र के वो खूनी दृश्य भी शामिल है। जहां से गीता के श्लोकों की उत्पति होती है। इन्हीं श्लोकों में एक वाक्य है।
“धर्मो रक्षति रक्षितः”

जब पितामह भीष्म ने किया युद्ध का शंखनाद –

धर्म के वास्तविक अर्थ को बताने वाले श्लोक ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ को समझना है तो आप महाभारत के एक प्रसंग से समझ सकते हैं। जब पितामह भीष्म युद्ध का उद्घोष करते हुए शंख बजाते है और दुर्योधन का हृद्य उल्लास से भर उठता है। उसे इस बात की खुशी होने लगती है कि, अब भीष्म पितामह कुछ कर दिखाएंगे। दुर्योधन का ये रवैया युद्ध प्रेमी की ओर इशारा करता है, जो एक पशु के अंदर होता है। जैसे किसी जंगल में शेर की दहाड़ सुनाई देती है वैसे ही दूसरे पशु किसी बड़े युद्ध की आहट को समझ लेते हैं। चूंकि पितामह सेनापति है। शंख बजाकर युद्ध का आह्वान करते हैं, लेकिन कृष्ण की ओर कोई शंखनाद नहीं किया जाता। महामहिम भीष्म जानते हैं कि, पांडव युद्ध के पक्ष में नहीं है। फिर भी वह दुर्योधन को खुश करने के लिए जंग का आह्वान करते हैं।

पितामह भीष्म ने क्यों दिया अधर्म का साथ ?

हम सभी को पता है, पितामह भीष्म के जैसे महाभारत में शायद ही कोई वीर, विरक्त, ब्रह्मचारी और त्यागी होगा। लेकिन एक श्रेष्ठ पुरुष होने के बाद भी वह धर्म की स्थापना में चुक गए। वह चाहते तो दुर्योधन को बंदी बनाकर धर्म की स्थापना में श्री कृष्ण का साथ दे सकते थे। लेकिन शायद उन्होंने अपने वचन की मर्यादा रखते हुए अधर्म का साथ देना चुना। जो किसी भी सूरत में धर्म को परिभाषित नहीं करता है।

पितामह भीष्म को लेकर क्या कहते हैं स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ?

महाभारत से जुड़े प्रसंग को लेकर सद्गुरु अपनी किताब ‘गीता ज्ञान मंदाकिनी’ में लिखते हैं कि… भीष्म पितामह के पास इच्छा मुत्यु का वरदान था, जो उनकी माता गंगा से मिला था। वहीं दोर्णाचार्य के हाथों में जब तक अस्त्र है उन्हें कोई मार नहीं सकता था। लेकिन ये सभी वीर आज कहां हैं। यहां तक कि, कृपाचार्य और अश्वत्थामा को लेकर भी कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिलता है। जिन्हें महाभारत में अमर बताया गया है। हालांकि इसके विपरीत पांडवों ने कष्ट सहने के बाद भी कभी धर्म का साथ नहीं छोड़ा। वह 12 साल वनवास और एक साल अज्ञातवास में रहें। उसके बाद भी पांडव केवल यही कहते रहें- “रखो अपनी धरती तमाम… दे दो केवल पांच ग्राम” लेकिन दुर्योधन हमेशा इन शब्दों से विपरीत बातें बोलता है। वह पांडवों के बजाय सीधे श्री कृष्ण को ललकारता। हालांकि श्री कृष्ण उसकी मुर्खता को देख शांत हो जाते हैं। यहां तक कि युद्ध भूमि में भी वह सफेद घोड़ों से युक्त रथ पर सवार होते हैं। जिसे शांति का प्रतीक माना जाता है।

श्वेत रंग के माध्यम से भगवान कृष्ण अपने रथ के जरिए कौरवों को यह संकेत देना चाहते थे, कि हिसां के मार्ग को छोड़ अहिंसा के मार्ग पर आइएं। लेकिन सफेद वस्त्र पहनकर महायुद्ध में उतरने वाले कौरवों की आंखों पर महाविनाश की काली पट्टी बंध चुकी थी।

महाभारत के युद्ध में क्यों हुई पांडवों की जीत ?

करुक्षेत्र में जैसे ही पितामह भीष्म ने शंखनाद कर पांडवों को युद्ध के लिए ललकारा, वैसे ही श्री कृष्ण ने शंख बजाया और उनकी चुनौती स्वीकार की। इस युद्ध के आह्वान को पांडवों की ओर से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन जैसे बलवान योद्धा भी स्वीकार कर सकते थे। लेकिन उन सबने धर्म का साथ देते हुए खुद को श्री कृष्ण के हवाले कर दिया। भगवान कृष्ण कौरवों की ओर से पितामह के शंखनाद को अस्वीकार भी कर सकते थे। लेकिन उन्हें पता था कि भीष्म मेरे दिव्य रूप को पहचान लिए हैं। इसका प्रमाण उन्हें उसी वक्त मिल गया था। जब वह पहली बार पांडवों की ओर से हस्तिनापुर के दरबार में गए और खुद का परिचय देते हूं सबको प्रणाम किया, लेकिन उनके अभिवादन को महामहिम भीष्म ने अस्वीकार करते हुए, उनके सामने खुद अपना सिर झुका लिए थे। इसके कुछ दिनों बाद कुरुक्षेत्र में जैसे ही महायुद्ध शुरू होता है। वैसे ही पितामह भीष्म समझ जाते हैं कि, इस रण में पांडव विजयी होंगे क्योंकि उनके साथ कृष्ण के रूप में धर्म खड़ा है।

]]>
https://sadgurudham.com/dharma-rakshati-rakshati/feed/ 0
जातिस्मरणसाधना : अपने पूर्वजन्म के पापों से पाएं मुक्ति https://sadgurudham.com/jaatismaransadhana-get-freedom-from-the-sins-of-your-previous-birth/ https://sadgurudham.com/jaatismaransadhana-get-freedom-from-the-sins-of-your-previous-birth/#respond Mon, 02 Dec 2024 12:53:17 +0000 https://sadgurudham.com/?p=1992 इंसानी मन को अस्थिर करने वाले ये सवाल किसी भी व्यक्ति के पिछले जन्मों से जुड़ा हुआ है ? जिसको लेकर अध्यात्म की दुनिया में तमाम तरह की बातें की जाती है। ज्योतिष शास्त्र की माने तो- मनुष्य के जीवन में जो कुछ भी हो रहा है। उसमें कहीं न कहीं उसके पिछले जन्म का भी हाथ है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि जब कोई इंसान वर्तमान में सुखी से रह रहा है तो जरूर उसके पिछले जन्मों के अच्छे कर्मों का फल है… इसके अलावा ग्रह नक्षत्रों के आधार पर भी इंसानों के पूर्वजन्म का पता लगाया जाता है।

जाति स्मरण साधना शिविर –

दिनांक: 25-30 दिसंबर 2024
स्थान : शाहपुर (मुंबई)
संपर्क करें : 9968430203, 9013547660

लेकिन यदि आपसे कहा जाए कि आज के समय में कोई भी व्यक्ति अपने पूर्वजन्म के दर्शन कर सकता है। वो भी साधना के माध्यम से। तो शायद आपको भरोसा करना मुश्किल होगा। दरअसल, सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज के सानिध्य में जाति स्मरण साधना शिविर का आयोजन होने वाला है। यह आयोजन उन लोगों के लिए है जो अपने पूर्वजन्म को देखना चाहते हैं और अपने पिछले जन्म में किए गए बुरे कर्मों का प्रायश्चित करना चाहते हैं।

यह आयोजन 25 से 30 दिसंबर तक मुंबई के सद्गुरु धाम आश्रम शाहपुर में होगा, जिसमें हिस्सा लेकर कोई भी साधक अपने पिछले जन्म के दर्शन करते हुए पूर्वजन्म के हर पापों से मुक्ति पा सकता है। इसलिए जो लोग सद्गुरु के सानिध्य में दीक्षा लेना चाहते हैं और अपने पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं। वह नीचे दिए गए नंबर पर कॉल कर सकते हैं।

]]>
https://sadgurudham.com/jaatismaransadhana-get-freedom-from-the-sins-of-your-previous-birth/feed/ 0
एक ब्राह्मण की वजह से सोमनाथ मंदिर में हुई थी लूट ? https://sadgurudham.com/was-there-loot-in-somnath-temple-because-of-a-brahmin/ https://sadgurudham.com/was-there-loot-in-somnath-temple-because-of-a-brahmin/#respond Sat, 23 Nov 2024 10:39:18 +0000 https://sadgurudham.com/?p=1950 हमारा देश भारत अपनी विविधिताओं के जरिए कई तरह की कहानियों को समेटे हुए हैं। इसमें हिंदुस्तान को बंटने से लेकर लूटने तक और मंदिर-मस्जिदों को बनने से लेकर ढहने तक कई किस्सें शामिल है। इन्ही वृतांतों में एक कहानी सोमनाथ मंदिर से जुड़ी हुई है। जिसे मोहम्मद गजनवी के द्वारा लूटा गया था। लेकिन गजनवी के इस काम को सफल बनाने में सोमनाथ मंदिर में रहने वाले एक लालची पंडित का भी हाथ था। जिसने लालच में आकर अपने ही समाज को धोखा देने का काम किया।
जब सोमनाथ मंदिर पर गजनवी ने किया हमला –

मोहम्मद गजनवी, एक हजार ईस्वी से ही कई देशों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिलती थी। हालांकि बार– बार असफल होने के बावजूद भी वह हिम्मत नहीं हारा और साल 1026 के दौरान सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। उसके आक्रमण को देख कुछ राजाओं ने उसे रोकने का प्रयास तो किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाएं। एक मुस्लिम सुल्तान के आक्रमण से बड़े बड़े राजा सहमे हुए नजर आ रहे थे। लेकिन इन सबमें एक शख्स ऐसा था जिसको अपने परमात्मा पर भरोसा था। दरअसल गजनवी के आक्रमण के दौरान जब कई राजा डरे हुए थे। उसी दरमियान सोमनाथ मंदिर के एक पुजारी का कहना था कि –

“जब सबकी रक्षा भगवान शंकर करते हैं, तो उनकी रक्षा करने की हिम्मत कौन कर सकता है” जैसे ही मोहम्मद गजनवी मंदिर के निकट पहुंचा। वैसे ही वहां मौजूद राजाओं ने उसे घेर लिया। औरतों ने भी तलवार निकाल ली। ऐसी स्थिति को देख मंदिर के एक महंत ने कहा कि- “तुम लोग क्यों इस दुष्ट के साथ लड़ रहे हो, इसे भगवान खुद भस्म कर देंगे”

गजनवी को किसने बताया सोमनाथ मंदिर से जुड़ा राज ?

सोमनाथ मंदिर अपार संपत्ति और हीरे- जवाहरात से भरा पड़ा था। चारों तरफ खाई थी जो जल से भरी थी। गजनवी के आक्रमण को देखते हुए राजपूत समाज के लोग भी अपने अस्त्र- शस्त्र के साथ उसकी सेना पर हमला करने की योजना बनाने लगे। हालांकि सोमनाथ की रक्षा करने आए लोगों के उत्साह को देख गजनवी हिम्मत हार गया था। क्योंकि उसके सैनिकों की रसद समाप्त होने वाली थी। अंत में ऐसी स्थिति बनी कि वह भागने के लिए भी तैयार हो गया। लेकिन वह अपनी जान बचाकर मंदिर से भागता तभी एक लालची पंडित ने अपने स्वाभिमान को बेचते हुए ऐसा राज बताया। जिसके बारे में कुछ लोग ही जानते थे।  

दरअसल, मन्दिर में एक सुरंग थी जो सीधे बाहर जंगलों में खुलती थी। यहां गजनवी अपने सैनिकों के साथ डेरा डाल रखा था। इसका भेद सिर्फ वहां के पुजारी ही जानते थे। आधी रात में एक पुजारी इसी गुप्त रास्ते से उसके पास जा पहुंचा, जिसे देख गजनवी आश्चर्य में पड़ गया। गजनवी कुछ कह पाता कि तभी उस पुजारी ने कहा कि- “महाराज मैं मन्दिर का पुजारी हूं. मैं जानता हूं कि आप मन्दिर में प्रवेश करना चाहते हैं, लेकिन मेरे सहयोग के बिना यह सम्भव नहीं है”

पुजारी ने आगे कहा कि- “यदि आप मंदिर में प्रवेश करना चाहते हैं तो आपको मुझे एक वचन देनी होगी” गजनवी पुजारी की बातों को सुन प्रसन्न मन से बोला- “पण्डित जी! आप जो कहेंगे वही मानूंगा” पंडित ने अर्ज करते हुए कहा कि- “जब आप सोमनाथ मंदिर की गद्दी पर बैठना तब आप मुझे प्रधान पुजारी नियुक्त कर देना” गजनवी और पंडित एक दूसरे की बातों से सहमत हो गए। वह खुशी-खुशी अपने सैनिकों के साथ मन्दिर में प्रवेश कर गया।

गजनवी ने क्यों कर दी राज बताने वाले ब्राह्मण की हत्या ?

मंदिर में घुसने के कुछ समय बाद पीछे से हमला करते हुए गजनवी वहां मौजूद राजाओं और उनकी सेना को मार गिराया । अंतत: वह सोमनाथ मंदिर को लूटने में कामयाब हो चुका था। अब बारी रास्ते का भेद बताने वाले पंडित को प्रधान पुजारी नियुक्त करने को थी। पंडित खुशी मन से गजनवी की ओर आरती की थाली लेकर बढ़ा, तभी उसने अपने घोड़े पर बैठे-बैठे पुजारी को टांग लिया। उसकी लंबी चोटी को काटते हुए गजनवी ने कहा कि-

“जो अपनों का नहीं हुआ वह मेरा कैसे हो सकता है. तू धूर्त और  अवसरवादी है.  मेरे अल्लाह इसे स्वीकार करों”

अपनों के साथ धोखा देने वाले दुष्ट पंडित की कटी हुई गर्दन मोहम्मद गजनवी के हाथों में थी। इसी बीच उसकी नजर एक शिवलिंग पर पड़ी। जो चार खंभों के बीच में स्थापित थी और चमक रही थी। गजनवी उस चार खंभों को देख समझ गया कि यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि मैग्नेट का सिद्धांत है। यानी ये चारों खंभे किसी चमत्कार से नहीं बल्कि इसमें मौजूद हीरे – जवाहरात से चमक रहे हैं। उसने बिना देरी किए खंभों को तोड़ना शूरू किया और बेशकीमती हीरो व गहनों को अपने साथ लेकर अपना देश चला गया।

]]>
https://sadgurudham.com/was-there-loot-in-somnath-temple-because-of-a-brahmin/feed/ 0
एक स्त्री ने शेख फरीद को कैसी सीख दी ? अपने सद्गुरु से कैसे मिले बाबा फरीद ? https://sadgurudham.com/what-lesson-did-a-woman-teach-sheikh-farid/ https://sadgurudham.com/what-lesson-did-a-woman-teach-sheikh-farid/#respond Sat, 23 Nov 2024 10:37:38 +0000 https://sadgurudham.com/?p=1948 कबीर से लेकर गुरु हरिकृष्ण साहिब और भगवान बुद्ध से लेकर गुरु नानक साहिब तक आपने कई संत और गुरु भक्तों की कहानी सुनी होंगी। इन्हीं गुरु भक्तों में शेख फरीद भी शामिल है, जो एक मुस्लिम संत थे और बचपन में अल्लाह की भक्ति के बजाए गुरु की खोज को लेकर अपने घर-परिवार को भी त्याग दिए।  जप-तप और साधना के माध्यम से अपने गुरु की खोज करने वाले बाबा फरीद का कहना था कि हे कौएं मरने के बाद हर जगह का मांस खाना लेकिन आंखों को छोड़ देना क्योंकि मौत के बाद भी एक सच्चे भक्त की आंखों में उसके गुरु से मिलन की आस रहती है

अहंकारी फरीद को कैसे हुआ फछतावा ?

हर रोज की तरह शाम के वक्त चिड़ियां चहचहाते हुए अपने घोंसलों में लौट रही थी। पूरे वातावरण में खुशी का माहौल था लेकिन इस खुशनुमा माहौल में एक शख्स ऐसा था जो निराश मन से बैठा था। वो इंसान कोई और नहीं बल्कि शेख फरीद थे, जो गहरी सोच में एक कुएं के टीले पर बैठे थे। इसी बीच चिड़ियों का एक झूंड बार बार उनके ऊपर से उड़ रहा था और अपने घोंसले तरफ जा रहा था। फरीद को यह बात नागवार गुजरी, उनको लगा कि ये पक्षी हमारा मजाक उड़ा रही है। तभी उन्होंने उन पक्षियों से खुद को बड़े तपस्वी बताते हुए मरने का श्राप दे दिया। उनके मुख से यह वाणी निकलते ही सभी पक्षी मर कर गिरने लगे। लेकिन इस मृत्यु का नग्न नृत्य देख शेख का हृदय पिघल उठा। वह सोचने लगे कि यह मैंने क्या कर दिया। मां ने मुझे बताया था कि- सारे जीव खुदा के द्वारा ही बनाए गए हैं, किसी को कष्ट देना उचित नहीं है। इसके बावजूद मैं इन्हें मरने का श्राप दे दिया। कुछ देर बाद बाबा फरीद को अपने किए पर पछतावा हुआ और उन्होंने सभी पक्षियों के जिंदा होने का आशीर्वाद दिया। शेख के वरदान से सभी पक्षी जिंदा भी हो गए।


एक लड़की ने फरीद को कैसे दी गुरु भक्ति की सीख ?

पक्षियों के जिंदा करने के बाद शेख फरीद को लगने लगा कि उनके अंदर तप की शक्ति आ गई है। वह खुद को एक बड़े तपस्वी समझने लगे और धीरे धीरे उनका मन अहंकार से भरने लगा। समय जैसे जैसे बीतता गया बाबा फरीद अशांत रहने लगे, शायद उनकी तपस्या उन पर विपरीत प्रभाव डालने लगी। क्योंकि वह घमंडी हो गए थे। अंतत: उन्होंने अपने सद्गुरु की खोज करनी शुरू कर दी। एक दिन शेख यात्रा में थे, और सोच रहे थे क्या मुझे सच्चे रहबर यानी मार्गदर्शक के दर्शन नहीं होंगे। इन्हीं बातों को सोचते सोचते उन्हें जोर से प्यास लगी। वह कुएं के पास पहुंचे जहां एक लड़की पानी निकालती और जमीन पर गिरा देती। इसे देख फरीद ने कहा कि बहन मैं प्यासा हूं।  क्या मुझे पानी पिला सकती हो ?

तभी लड़की ने पानी पिलाने की बात कही, हालांकि वह फिर अपने घड़े में पानी भरती और उसे नीचे गिरा देती। इसे देख फरीद ने एक बार फिर से उसे याद दिलाते हुए पानी पिलाने की बात कही। लड़की ने फिर से हां कहा, लेकिन पानी को जमीन पर गिराने लगेगी। ऐसा देख शेख को उस लड़की पर गुस्सा आया और क्रोध में उन्होंने कहा कि-

हे लड़की, तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा? मैं प्यासा हूं और तुमसे पानी मांग रहा हूं लेकिन तुम पानी को जमीन पर गिराए जा रही हो। मैं कोई भीखमंगा नहीं बल्कि एक तपस्वी फकीर हूं

लड़की शेख की बातों को सुन एक बार फिर से पानी को जमीन पर गिराते हुए मुस्कराई और बोलीं- “क्या तुम मुझे जंगल की चिड़िया समझ रहे हो कि तुम्हारे कहने पर मैं मर जाऊंगी”  यह सुन शेख फरीद का सारा क्रोध गायब हो गया। वे आश्चर्य से उसे देखने लगे- बाबा फरीद सोचने लगे कि-  मैंने इतने दिन तप किया और अहंकार मिला लेकिन यह लड़की इतनी कम उम्र में ही सब कुछ जान गई। आखिर यह कौन-सी साधना करती है ? ऐसा लगता है कि इसे इसके सद्गुरु के दर्शन हो गए हैं।

अतत:  शेख प्रसन्नतापूर्वक उस लड़की से पूछते हैं कि –

बहन तुम कौन सी साधना करती हो जिसकी वजह से तुम्हें सबकुछ पता है लड़की नम्रतापूर्वक बोली: “हे फकीर! पहले तुम पानी पिलों, फिर मैं तुम्हारे अंदर की सारी प्यास को शांत करूंगी”

कुछ देर बाद लड़की ने उन्हें समझाते हुए कहा कि- “मैं सद्‌गुरु से ज्ञान ग्रहण कर अपने पति की मन, वचन, कर्म से सेवा करती हूं। गुरु के आदेशानुसार उन्हीं में परमात्मा का दर्शन करती हूं। इसी से ये सारी सिद्धियां मुझे प्राप्त हुई है। रही बात पानी गिराने की तो यहां से कुछ दूरी पर मेरी बहन रहती है। जिसके घर में आग लग गई है। इस पानी के जरिए मैं उस आग को बुझा रही थी। आप थोड़े देर और प्यासे रह सकते हैं लेकिन वो आग खुद से नहीं बूझ पाती। इसलिए आपको मैंने बाद में पानी पिलाया” पानी गिराने वाली लड़की आगे कहती है कि – “हे फकीर! आप आपने सद्गुरु की खोज कर रहे हैं। इसलिए आप यहां वहां न जाकर सीधे दिल्ली जाइए। जहां आपकी सच्ची श्रद्धा का फल  मिलेगा” अतंत: शेख फरीद दिल्ली पहुंचे जहां निजामुद्दीन के फकीर ख्वाजा शरीफ के पास उनके गुरु के दर्शन हुए।

]]>
https://sadgurudham.com/what-lesson-did-a-woman-teach-sheikh-farid/feed/ 0
ऋषि जाजली को क्यों नहीं मिल पा रहा था धर्म का ज्ञान ? https://sadgurudham.com/why-was-rishi-jajali-not-able-to-get-the-knowledge-of-religion/ https://sadgurudham.com/why-was-rishi-jajali-not-able-to-get-the-knowledge-of-religion/#respond Sat, 23 Nov 2024 10:36:58 +0000 https://sadgurudham.com/?p=1946 अध्यात्म से जुड़े इस संसार में लोग जितना ध्यान पूजा पाठ कराने वाले पंडितों पर देते हैं। उतनी ही ध्यान उन तपस्वियों पर देते हैं जिनको लेकर सदियों से कुछ के मन में यह धारणा बैठ गई है कि- संन्यासियों का कोई घर नहीं होता है, उन्हें किसी सभ्यता या संस्कृति से वास्ता नहीं होता, कुछ लोग ये भी मानते हैं कि संन्यासी जीवन जंगली पशु के समान होता है, जो जंगलों में रहना और खाना पसंद करते हैं, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि संन्यास धारण करने में ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि साधना में लीन रहने और धर्म के मार्ग को अपनाने के लिए जंगल में रहकर ही तप करना जरूरी होता है।

सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज अपनी किताब बुद्धों का पथ में पंडित जाजली की कहानी बताते हैं। वह कहते हैं कि

आज के काल्पानिक संन्यासियों के चलते दुनिया इतनी कुरूप नजर आ रही है। कुछ लोग संन्यासी जीवन को जंगली जानवरों के जीवन से जोड़कर देखने लगे हैं। संन्यासी जीवन को समझना है तो आप पंडित जांजली के जीवन से समझ सकते हैं। जो धर्म के ज्ञान और प्रभु के दर्शन को पाने के लिए दिन-रात तप किया करते थे। लेकिन उन्हें उनके प्रभु के दर्शन एक दुकान चलाने वाले बनिए के सानिध्य में आकर प्राप्त हुआ।

ऋषि जाजली ने कैसे की थी घोर तपस्या ?

पंडित जाजली एक संन्यासी थे। जिनके पिता बहुत बड़े कर्मकाण्डी ब्राह्मण थे। जाजली को लगता था कि उन्हें समाज की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए समाज से भिक्षा लेकर अपना पेट भरना स्वाभिमान समझते थे। समाज के भी तथाकथित धर्मभीरु लोग, जिनकी संख्या ज्यादा थी, पुण्य के लोभ से जाजली को दान देना अपना कर्तव्य समझते थे। हालांकि लोगों के बीच जाजली का डर इतना था कि कोई उनसे बात करने के बारे में भी नहीं सोचता। जाजली के अंदर धीरे धीरे तपस्या का अहंकार होता गया। वह अपने तप में इस कदर अंधे हो गए कि उन्होंने भोजन करना बंद कर दिया और केवल कंदमूल, फल-फूल के सहारे अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

एक ही जगह पर तप करने की वजह से धीरे-धीरे इनकी प्रतिष्ठा बढ़नी शुरू हो गई। लेकिन बढ़ते यश के साथ उनके शरीर पर दमन का चक्र बनना भी शुरु हो गया। कुछ समय में वह केवल एक ही जगह खड़े होकर तप करना शुरू कर दिए। ऐसे तप को देख लोग उन्हें खड़ेशरी बाबा के नाम से भी पुकारने लगे। चारों तरफ गुणगान होने लगा, लोगों की भीड़ जुटने लगी। लोग उनसे बातचीत तो करना चाहते थे लेकिन जाजली अपने तप में मग्न रहते। धीरे-धीरे उन्होंने शरीर का एक-एक वस्त्र त्याग दिया। केवल एक लंगोट पहनकर मौसम की मार को सहने लगे। रात में जैसे ही सर्दी पड़ती वैसे ही वह कांपने लगते और सोचते कि। हे भगवान! तू क्या अब भी हमारे तप से प्रसन्न नहीं है ?

ऋषि जाजली को लेकर कैसी भविष्यवाणी हुई ?

जाजली के मन की धैर्यता धीरे-धीरे टूटने लगी थी। प्रभु के दर्शन के इंतजार के बीच उनके बालों पर घोंसला बन गया था। जिस पर कुछ पक्षियों ने अंडा भी दिया था। इसके बावजूद भी जाजली अपनी घोर तपस्या से उठने वाले नहीं थे। इसी बीच परेशान जाजली को देख प्रभु की आकाशवाणी हुई.

एक वैश्य ने कैसे दिया ऋषि जाजली को धर्म का ज्ञान ?

आकाशवाणी को सुन पंडित जाजली गंगा में स्नान किए और काशी की ओर चल दिए। काशी में उन्हें तुलाधार वैश्य से भेंट हुई जो एक दुकान में अपने परिवार के साथ बैठे हुए थे। तुलाधार वैश्य को देख पंडित जाजली हैरान हो गए। वह सोचने लगे कि जिस प्रभु के दर्शन के लिए मैंने दिन-रात बिन खाए तप किया। क्या उनसे भेंट एक परिवार के साथ रहने वाला इंसान करा सकता है। हालांकि, जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे जाजली तुलाधार वैश्य से घुलते गए। अंत में तुलाधार वैश्य ने कहा कि-

“हे मुनिवर ! आपको घबराने की जरूरत नहीं है। मैंने भी यह ज्ञान अपने सद्गुरु से प्राप्त किया है। जो यह बतलाते हैं कि परमात्मा की प्राप्ति बिन खाएं पिए एक जगह खड़े रहकर और तप करने से नहीं बल्कि एक समय के सद्गुरु के सानिध्य से होता है” 

तुलाधार वैश्य की बातों को सुनते-सुनते पंडित जाजली ध्यान में चले गए। उनका चेहरा दिव्य आभा से घिर आया और अंत में उन्हें एक आध्यात्मिक किरण दिखाई देने लगी। जो धर्म के ज्ञान की राह की ओर ले जा रही थी।

]]>
https://sadgurudham.com/why-was-rishi-jajali-not-able-to-get-the-knowledge-of-religion/feed/ 0
नांगलोई आश्रम में सद्गुरु का हुआ आगमन https://sadgurudham.com/sadhguru-arrives-at-nangloi-ashram/ https://sadgurudham.com/sadhguru-arrives-at-nangloi-ashram/#respond Sat, 23 Nov 2024 10:33:26 +0000 https://sadgurudham.com/?p=1980 दीवाली के पावन अवसर पर 29 अक्टूबर को सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज का नांगलोई आश्रम में आगमन हुआ। यहां उपस्थित लोगों ने फूल-माला से स्वागत करते हुए उनकी आरती भी उतारी।

]]>
https://sadgurudham.com/sadhguru-arrives-at-nangloi-ashram/feed/ 0