सीक्रेट साइंस अर्थात् गुप्त विज्ञान का विज्ञान पूर्णतः श्रद्धा-विश्वास पर गमन करता है। विद्युत के गमन के लिए सुचालक तार की आवश्यकता होती है, इसी तरह इस ऊर्जा के गमन के लिए श्रद्धा एवं भक्ति की आवश्यकता है। वह विद्युत पावर हाउस से आती है। पावर हाउस में विद्युत ताप जेनरेशन ग्रिड से आती है। यह ऊर्जा परम पिता परमात्मा से आती है । उन्हीं में वापिस हो जाती है। पावर ग्रिड का कार्य गुरु करता है जो सतत् परम-प्रभु से जुड़ा रहता है। यही कारण है कि वे अपने को ‘ब्रह्मस्मि’ कहने लगते हैं। ईसा ने अपने को परमात्मा का इकलौता पुत्र कहा है। मुहम्मद साहब ने अपने को मैसेंजर कहा है।
गुरु उसी शक्ति को उपयुक्त व्यक्ति, परम सिद्ध या आचार्यों में देता है। वे लोग साधक एवं सिद्धों में ऊर्जा को ट्रांसफर करते हैं। इस ऊर्जा शक्ति को भी दीक्षित व्यक्ति कहीं भी, किसी भी समय ग्रहण कर, उसका सदुपयोग कर सकते हैं। साधक, सिद्ध, सिद्धासिद्ध, आचार्य, परमाचार्य की विभिन्न स्थितियां हैं। जो पात्रता के अनुसार बनाई जा सकती हैं ।
यह ऊर्जा जैसे ही रोगी में प्रवेश करती है, उसकी प्रत्येक कोशिका (सेल) ऊर्जान्वित होने लगती है। व्यक्ति के अंदर दबी हुई मनोभावनाएं एवं ऊर्जा संतुलित होने लगती है। आवश्यकता एवं मांग के सिद्धांत पर स्वयं स्थान विशेष पर पहुंच जाती है। यह ऊर्जा व्यक्ति के सातों चक्रों एवं कवचों पर आवश्यकता के अनुसार पहुंच जाती है ।
यह ऊर्जा व्यक्ति के जीवन की मायूसी, तनाव, थकावट, परेशानी को दूर कर चुस्ती, आनंद व ताजगी से भर देती है। यह साधक पर निर्भर करता है कि वह किस मात्रा में इसे प्रयोग में लाता है।
तेजी के साथ कैसे प्राप्त करें ऊर्जा ?
गुरु के फोटो पर कम से कम दो मिनट त्राटक करें और ऐसी भावना करें कि गुरु द्वारा अनन्त ऊर्जा निकल रही है। वह आपके मस्तिष्क में पहुंच रही है। आज्ञा चक्र, विशुद्ध चक्र से होते हुए आपके हाथों में पहुंच रही है। अपने हाथों को आपस में घर्षण करें जिससे ऊर्जा प्रवाहित होने में मदद मिले। कुछ क्षण में आप महसूस करेंगे कि आपके दोनों हाथ झनझना गए। अपूर्व ऊर्जा से आपके हाथ गरम हो गए फिर मन ही मन गुरु को नमन करें। अपने को धन्यवाद दें कि गुरु की अनुकम्पा से मुझे सेवा का अवसर प्राप्त हुआ है। फिर रोगी को धन्यवाद दें। तत्पश्चात अपने हाथ को रोगी के शरीर पर रखें। हाथ कटोरीनुमा ही रखें। मौन रहें ध्यान में स्वयं रहें तथा रोगी को भी रखें,
जो व्यक्ति जितना बड़ा भक्त होगा उतना ही सहृदय होगा, कारूणिक होगा, दानी होगा, परोपकारी होगा, वह उतना ही शीघ्र ऊर्जा ग्रहण करता है। वह शीघ्र ही आरोग्यता प्राप्त कर लेता है। यदि वह स्वेच्छा से अपना कर्म भोग भोगना चाहता है। इस भोग के लिए वह परमात्मा को धन्यवाद दे रहा है। तब उसके इच्छा में परिवर्तन लाना होगा। जब रोगी सहयोग करेगा तभी आप उसे रोग मुक्त कर सकते हैं |