ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैI वे हम ही है जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है
स्वामी विवेकानंद की ये लाइन उस ब्रह्मांड को लेकर है, जिसे विज्ञान ने बिग बैंग जैसे थ्योरी से परिभाषित किया तो अध्यात्म ने इसे तत्व रूप परमात्मा का मूल स्थान मानाI लेकिन इस ब्रह्मांड की एक व्याख्या हमारे शरीर से भी जुड़ी हुई हैI जिसे सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ने परिभाषित करते हुए ये बताने की कोशिश की हैI हमारा शरीर एक ब्रहाम्ड की तरह हैI जिसके अंग इस संसार को चलाने वाली व्यवस्था के जैसे काम करते हैं
विशाल ब्रह्माण्ड की प्रतिमूर्ति है हमारा शरीर
सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज अपनी पुस्तक ‘उमा कहऊं मैं अनुभव अपना’ में कहते हैं कि हमारा शरीर इस विशाल ब्रह्माण्ड की प्रतिमूर्ति हैI इस शरीर के अन्दर ठीक वैसे ही सात चक्र हैं जैसे इस संसार को सात महादेश और सात सागरों में बांटा गया हैI शरीर में मौजूद सात चक्रों के बारे में सद्गुरु का कहना है कि प्रत्येक चक्र का एक-एक कमल दल एक-एक राष्ट्र की तरह होता हैI जैसे कमल दलों के बीच में बैठे देवता उस दल के राजा के समान दिखते हैं ठीक वैसे ही इन सात महादेशों का एक एक अधिपति होते हैंI हमारे समाज में जिस तरीके से दो तरह के कर्मचारी एक वेतनभोगी और दूसरा स्वयंसेवी की तरह काम करते हैंI वैसे ही हमारे शरीर के अंदर भी दो तरह के कर्मचारी हैI जिसके तहत हृदय, फेफड़ा, प्राण, मस्तिष्क, और रक्तवाहिनियां आती हैI स्वयंसेवी के तहत आने वाले शरीर के इन अंगों को महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया हैI जो हमेशा निःस्वार्थ भाव से कार्य में लगे रहते हैंI लेकिन जैसे ही ये अंग किसी बीमारी की चपेट में आते हैं वैसे ही हमारा शरीर खतरे में पड़ जाता हैI
शरीर की पांचों ज्ञानेंद्रियां और ब्रह्माण्ड
जब बात मानव शरीर के अंगों की हो तो कोई उन ज्ञानेंद्रियों को कैसे भूल सकता हैI जिसके जरिए कोई इंसान देखने, सुनने और सांस लेने के साथ किसी भी चीज का अनुभव करता हैI यानी आंख, नाक, कानI जीभ और त्वचा जिसे विज्ञान की भाषा में SENSE ORGANS कहा जाता हैI इन्हीं SENSE ORGANS को लेकर सद्गुरु लिखते हैं कि हमारी पांचों ज्ञानेन्द्रियां, पंच कर्म करने वाले एक वैतनिक सेवक की तरह होती हैI जिनका भोग मिलना ही वेतन हैI यदि उन्हें नियमित भोग के साधन मिलते हैं, तब ये सुचारू रूप से काम करती है, लेकिन जैसे ही इन इन्द्रियों पर हमारा नियंत्रण कमजोर पड़ता हैI वैसे ही ये कई प्रकार के भोगों के दलदल में फंस जाती हैI शरीर के SENSE ORGANS पर जैसे ही कोई इंसान अपना नियंत्रण खोने लगता हैI वैसे ही कई तरीके के रोग व्याधि से वह ग्रसित हो जाता है और उसका शरीर बीमार पड़ने लगता हैI
सद्गुरु अपनी किताब के माध्यम से ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे शरीर के अंदर ही ये पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ हैI लेकिन अपने शरीर को एक ब्रह्मांड की तरह समझने वाला इंसान ही इसका ख्याल रख पाता है और इस संसार में मौजूद निगेटविटी को भी दूर करता हैI जैसे इस संसार में कुछ असामाजिक तत्वों की वजह से अराजकता का माहौल बनता है वैसे ही इंसानी शरीर के अंगों पर सही से नियंत्रण ना रख पाने की वजह से इंसान बीमार पड़ जाता हैI