हमारे शास्त्रों में दिव्यास्त्र और देवास्त्र का खूब वर्णन आया है | क्योंकि ये ऐसे दिव्य अस्त्र होते हैं, जो साधारण इंसानों को भले ही ना दिखाई दे लेकिन प्रकृति में हलचल जरूर पैदा कर देते हैं| इस दिव्यास्त्र में इतनी शक्ति होती है कि ये जिस वेग से तूफान लाते हैं उसी वेग से तूफान को शांत भी कर सकते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि किसी भी इंसान को इस दिव्यास्त्र की दीक्षा कैसे मिलती है ?
इस दिव्यास्त्र की दीक्षा को समझनी है तो आपको सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज के द्वारा बताई गई दिव्य गुप्त विज्ञान को समझना होगा| जिसके बारे में सद्गुरु बताते हुए कहते हैं कि, दिव्यास्त्र की दीक्षा किसी मंत्र या तप से नहीं बल्कि एक गुरु के सानिध्य में प्राप्त होता है| क्योंकि गुरु ही वो शख्स है, जो किसी भी साधक के सहस्त्रधार में खुद उतरकर गुरु के क्षेत्राधिकार में प्रवेश करता है |
बिना शर्त के दिव्यास्त्र की दीक्षा संभव नहीं
जब कोई भी गुरु अपने शिष्य को दिव्यास्त्र की शिक्षा देता है तो वे उसके सामने कुछ शर्त भी रखता है, क्योंकि शर्त पूरी नहीं होने पर वो उस शक्ति को वापस भी ले सकता है | यह शक्ति समय के सद्गुरु में समाहित होती है | यह किसी भी साधक को बिना किसी जानकारी के दी जाती है और वापस भी ली जाती है| सद्गुरु के द्वारा बताई गई इन बातों को समझनी है तो आप महाभारत के महान योद्धाओं में से एक अर्जुन की पात्रता से समझ सकते हैं | जिन्होंने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से विजय की पताका लहराई और देवासुर संग्राम में देवताओं की मदद भी की | लेकिन कैरवो की बड़ी सेना से बिना डरे लड़ने वाले अर्जुन उस समय हार गए , जब कोल जनजाति के लोग उन्हें घायल कर उनसे गोपियों को छीन लिए | उस समय अर्जुन के पास दिव्यास्त्र तो था, लेकिन वो कुछ काम नहीं कर सका, क्योंकि उन्हें अहंकार हो गया था कि मैं शक्तिशाली हूं और कृष्ण के प्रति उनकी आस्था उठ गई थी | केवल अर्जुन ही नहीं बल्कि कर्ण को भी दिव्यास्त्र की शक्ति प्राप्त थी | लेकिन रणभूमि में जैसे ही उन्होंने खुद की रक्षा के लिए दिव्यास्त्र का आह्वान किया | वैसे ही वो इसकी दीक्षा भूल गए और वीरगति को प्राप्त हो गए | असल में यहां दिव्यास्त्र की दीक्षा भूलने के पीछे उनके गुरु परशुराम की वो शक्ति थी, जिन्होंने कर्ण को अपना शिष्य तो माना था लेकिन उनके छल की वजह से उनसे दिव्यास्त्र की दीक्षा वापस ले लिए थे | महाभारत में कर्ण और अर्जुन जैसे दो वीर योद्धाओं की ये कहानी बताती है कि, दिव्यास्त्र की दीक्षा गुरु की कृपा के बिना संभव नहीं है लेकिन उसके लिए हर शिष्य का मन पवित्र और मोह माया व द्वेष से मुक्त होना चाहिए |
दिव्यास्त्र को लेकर क्या कहते हैं ‘सद्गुरु’ ?
दिव्यास्त्र के बारे में सद्गुरु आगे बताते हुए लिखते कि, ये दैवीय अस्त्र अमोघ यानी अचूक है | जिससे हर नेगिटिव एनर्जी की जगह पर पॉजिटिविटी को फैलाया जा सकता है | यह स्मरण शक्ति को बढ़ाते हुए भूले बिसरे बातों को भी याद दिलाती है | यह एक ऐसा अस्त्र है जिससे किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का विस्तार किया जा सकता है | यह एक ऐसी चाभी है जो किसी भी जीवन के रहस्य को खोल देती है और यह एक ऐसी विद्या है जिससे कोई भी इंसान अपनी भावनाओं को कंट्रोल भी कर सकता है |
ये दिव्यास्त्र से जुड़ी कुछ मुख्य बातें हैं जिसे सद्गुरु ने दिव्य गुप्त विज्ञान की दूसरी पुस्तक में बखूबी बताने की कोशिश की है | हालांकि इन बातों को और आसान भाषा में समझनी है तो आप सद्गुरु के सानिध्य में दीक्षा प्राप्त कर दिव्यास्त्र के व्यवारिक ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं |