एक ओंकार : कबीर ने कैसे दूर की सूर्यदेव की चिंता ?

सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज अपनी पुस्तक एक ओंकार में लिखते हैं कि प्रातःकाल के दौरान सुहावने मौसम में धीमी गति से हवा चल रही थी. चारों तरफ प्रकाश ही दिखाई दे रहा था. सूर्य क्षितिज से ऊपर उठ रहे थें, खेत लहलहा रहे थे, पेड़-पौधे फल-फूल से लदे हुए दिखाई दे रहे थे और पक्षियों की चहचहाहट से चारों ओर खुशी का माहौल था. लेकिन सूर्य के प्रकाश में गर्मी नहीं थी, ऐसा लग रहा था कि उनका हृदय व्याकुल हो उठा है वे आतुर होकर कुछ पूछना चाहते हैं. क्योंकि उनके वंशज राम को राजगद्दी दी जाने वाली थी. सूर्यदेव सुबह सज-धज कर निकल आए, वे प्रसन्न मन से राम को राज्यारोहित कराकर आशीर्वाद देना चाहता थे. इसलिए वे अयोध्या को टकटकी निगाहों से देख रहे थे. उनका मन अधीर हो उठा, उनको डर था कि कहीं अमंगल न हो जाए. इसलिए वह तेजी से अयोध्या के ऊपर जा पहुंचे. उनका हृदय अज्ञात भय से कांप रहा था. कभी कभी उनको खुद भरोसा नहीं हो रहा था कि क्या यह अयोध्या ही है या मैं कहीं दूसरी जगह भटक कर आ गया हूं ?

सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ। सुणिऐ धरति धवल आकाश ॥
सुणिऐ दीप लोअ पाताल। सुणिऐ पोहि न सकै कालु ||

अर्थात : अकाल पुरख के नाम में ध्यान जोड़ने वाले उस परम परमेश्वर, उसके नाम को केवल सुनने मात्र से ही साधारण मनुष्य भी पीरों, सिद्धों, देवताओं और नाथों वाली पदवी को प्राप्त कर लेता है |

श्री राम को देख क्यों आशंकित हुए सूर्यदेव ?

भगवान सूर्य खुद से ये पूछते थे कि  क्या ये राम ही हैं? . यदि ये राम है तो इनके सिर पर मुकुट की जगह जटा क्यों दिखाई दे रहा है. तन पर राजाओं के परिधान की जगह संन्यासी वस्त्र क्यों ? स्वामी कृष्णानंद जी महाराज आगे लिखते हैं कि, सूर्यदेव इस करूणा से खुद को संभाल नहीं पाए और वह समझ लिए कि, मेरे राम को वनवास दे दिया गया है. इस शोक से व्याकुल होकर उनके अंदर की तेज खत्म हो गई वह इस दुख को बर्दाश्त नहीं कर सके. उनकी गति अचानक रुक गई और वह अपने अस्त की ओर जा पहुंचे.

माता सीता को देख क्यों दुखित हुए सूर्यदेव ?

रामायण काल में सूर्यदेव की चिंता यहीं खत्म नहीं होती है बल्कि उनकी व्यग्रता तब और बढ़ जाती है जब, उनकी आंखों के सामने उनकी पुत्रवधू यानी मां सीता का दुष्ट रावण हरण कर लेता है और वह ये सब देखकर सुन्न हो जाते हैं. भगवान सूर्य जब भी यह सोचते कि अब उनके वंशज सुख में रहेंगे, तब उनके सामने कोई ना कोई विपत्ति आ जाती है. हालांकि वह अपने मन को बार बार समझाते है कि अब कोई और दुख नहीं आएगा. अब सुख ही सुख है. हमारे वंशज आनंद से रहेंगे. सत्य मार्ग पर धर्म का आचरण करेंगे. इंसानों को सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे, लेकिन उनके वंशजों पर दुख की घटा छाए ही रहती थी.

जब कबीर पर पड़ी सूर्यदेव की नजर

भगवान सूर्य जब अपने वंशजों की हालत को देख चिंतित थे, तभी उनकी नजर कबीरदास पर पड़ी. उन्होंने सोचा कि राजाओं की स्थिति को देख मैं तो व्याकुल हो जा रहा हूं, चलों किसी निम्न परिवार को देखते हैं. इसके बाद भगवान सूर्य की नजर कबीर के निर्धन कोली परिवार पर पड़ी, जो चरखा कातकर परिवार का भरण-पोषण करता था. भगवान सूर्य ने यह देखा कि कोली वंश में पैदा हुआ एक साधारण इंसान खुद को खुश रखने के बारे में न सोचकर दूसरों को प्रसन्न कर रहा है. इसके लिए उसके परिवार के सदस्य भूखे ही सो जाते हैं. दिनभर कठोर काम करते है, पिताजी व्यवसाय में तल्लीन रहते हैं और तरह तरह की बातें करने वाले एक कबीर के आस पास साधु-संतों की भीड़ इकट्ठी रहती है. संत कबीर की इस स्थिति को देख सूर्यदेव आश्चर्य में पड़ जाते हैं और कहते हैं. हे भगवान! इसे बुद्धि दो। जिससे यह इन साधुओं की संगति छोड़कर अपना कारोबार संभाले.

कबीरदास ने कैसे दूर की सूर्यदेव की चिंता ?

कबीर का आगमन वाराणसी में होता है, भगवान सूर्य भी उनपर नजर रखते हुए वाराणसी पहुंचते हैं जहां वे देखते हैं कि, यह फकीर जैसा रहने वाला इंसान धर्म पर अपना प्रवचन देते हुए कहता है कि, मात्र मंदिर एवं मस्जिद ही परमात्मा का घर है, ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा हुआ तो परमात्मा को पंडितों और मौलवियों के कैद में समझना चाहिए.  संत कबीर की इन बातों को सुन भगवान सूर्य को यह एहसास हो जाता है कि, राजा और हमारे वंशजों से ज्यादा सुखमय एक साधारण इंसान ही है, जिसके पास केवल अपने गुरु की भक्ति के अलावा किसी बात की चिंता नहीं है.

यह भगवान सूर्य की चिन्ता को लेकर सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज द्वारा लिखी गई पुस्तक एक ओंकार के कुछ अंश है, जिसके माध्यम से सद्गुरु यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आपका वंश, आपका परिवार भले ही कितना बड़ा हो लेकिन आपके जीवन को सुखमय बनाने का काम एक सद्गुरु ही कर सकता है जिसे आप सच्चे दिल से मानते हो.