गुप्त विज्ञानके वो रहस्य | DEVINE SECRET SCIENCE (DSS) PART2

विश्वमित्र ने राम को,संदिपनी ने कृष्ण को,नानक ने बालामरदाना, रामानन्द ने कबीर को और कबीर ने कमाल को जो प्रदान किया वही है दिव्य गुप्त विज्ञान है। ये वही विज्ञान है, जिसके बारे में बताते हुए भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि हे देवी ! कोई पुत्र मांगे तो दे दो। कोई धन मांगे तो भी दे दो। लेकिन कोई गुप्त विद्या मांगे तो मत देना क्योंकि यह एक ऐसी विद्या है जिसे गुरु के आदेश के बिना किसी को दिया नहीं जा सकता’’। इसलिए इसे दिव्य गुप्त विज्ञान कहा जाता है, जिसकी दीक्षा गुरु के बिना संभव नहीं है।

भगवान शिव ने गुप्त विद्या को लेकर मां पार्वती को क्या बताया ?

अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तद् पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

गुरु की कृपा के रूप में प्राप्त होने वाली दिव्य गुप्त विज्ञान अत्यन्त गुप्त विद्या होती है। इसे किसी भी तरह कुपात्र के सामने प्रकट नहीं किया जा सकता। प्राचीन समय में ऋषि गण इसे अपने अतिप्रिय शिष्य या अपने प्रिय पुत्र को प्रदान करते थे। यही कारण है कि यह विद्या सार्वजनिक नहीं हुई। भगवान बुद्ध के बाद यह विद्या अब बौद्धों में भी केवल नाम मात्र की रह गई है। इसी तरह कबीर साहब के बाद कबीर पंथियों में लुप्त होती हुई दिखाई दे रही है। इस विद्या का आध्यात्मिक प्रभाव कितना है, इसका अंदाजा आप भगवान शिव के उन कथनों से लगा सकते हैं, जब उन्होंने दिव्य गुप्त विज्ञान के बारे में बताते हुए पार्वती जी से कहा था हे देवी ! कोई पुत्र मांगे तो दे दो। कोई धन मांगे तो भी दे दो।।। लेकिन कोई गुप्त विद्या मांगे तो उसे किसी भी हालत में मत देना क्योंकि यह विद्या गुरु के आदेश के बिना किसी को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह दिव्य गुप्त विज्ञान है, जिसकी दीक्षा गुरु के बिना संभव नहीं है

क्या गुरु के बिना संभव है DSS की दीक्षा ?

शुरुआत में यह विद्या, परम्परा के रूप में गुरुशिष्य के माध्यम से चलती थी। हालांकि समय के अनुरुप गुरु को उचित कुशलता वाले शिष्य नहीं मिलने की वजह से यह पृथ्वी से विदा होती हुई दिख रही है। लेकिन कहते हैं न कि कोई भी वस्तु इस संसार से कितना भी लुप्त क्यों न हो जाए। लेकिन उसका सूक्ष्म रूप, भाव रूप, तरंग रूप सदैव आकाश में विद्यमान रहता है, क्योंकि इसका कभी नाश नहीं होता और यही वजह है कि आज भी कुछ सद्गुरुओं की वजह दिव्य गुप्त विज्ञान का अस्तित्व हमारी पृथ्वी पर मौजूद है। जिसमें से एक हैं सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज, जिन्होंने दिव्य गुप्त विज्ञान की खोज करते हुए बताया कि, समय के सद्गुरु के आगमन होते ही ये विद्याएं स्वतः ही उनके परम शिष्यों में प्रवेश करने लगती हैं। ये कैसे प्रवेश करती हैं, यह विधि उन्हें ज्ञात नहीं होता है। केवल उचित समय आने पर इस विद्या का आभास होता है। इस विद्या को हमें समझनी है तो, हम भगवान राम, कृष्ण, कबीर, और महाकश्यप कों मिलने वाली दीक्षा से समझ सकते हैं, जिसे उनके परम गुरु ऋषि विश्वमित्र, संदिपनी, रामानन्द औरबुद्ध के माध्यम से मिला था। दिव्य गुप्त विज्ञान को प्राप्त करने वाला शिष्य इस दीक्षा के दौरान गुरु कृपा से भर जाता है, गुरु के विदा होने पर उनकी एकएक विद्याएं उसके अंदर ऋद्धिसिद्धि के रूप में भरने लगती हैं, जिससे उसके साथ रहने वाला व्यक्ति, अचानक उसकी शक्ति को देखकर चौंक जाता है

DSS को लेकर क्या कहते हैं सद्गुरु ?

इस विद्या के बारे में बताते हुए सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज उन सातों चक्रों का भी उल्लेख करते हैं। जो किसी भी साधक के शरीर में मौजूद होते हैं, जिनको नियंत्रित कर वो स्वयं रोगों से मुक्त हो सकता है और दूसरों का भी दुख दूर कर सकता है। इन सात चक्रों में मुलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणीपुर चक्र, अनाहद चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, और सहस्त्रार चक्र शामिल है। इसके अलावा दिव्यास्त्र, ब्रह्मास्त्र और सुदर्शन चक्र भी वो आध्यात्मिक कारक है, जिसको अपनाकर आप अपने शरीर में दिव्य गुप्त विज्ञान की ज्योति जला सकते हैं। सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज दिव्य गुप्त विज्ञान DSS के आविष्कारक है, उन्होंने इस विद्या की खोज की है। उनका कहना है कि आज के वैज्ञानिक युग में हर कार्य भले ही मशीन के द्वारा तुरंत हो जा रहा है, हम दुनिया के किसी भी कोने में भले ही कुछ ही घंटों में पहुंच जा रहे हैं। लेकिन इस भागम भाग वाली दुनिया में हम खुद को आध्यात्मिक विकास में पीछे छोड़ते जा रहे हैं। अध्यात्म में पीछे होने की वजह से अधिकतर लोग इस संसार में दुखी, निराश, तनावपूर्ण, क्रोधी और स्वार्थी हो गए हैं। क्योंकि आज का मानव इतना पैसा कमा लेने के बाद भी मन की शांति, आनंद, खुशी नहीं खरीद पाया है। इसलिए अब लोग अध्यात्म की ओर मुड़ रहे हैं और उनके अंदर ऐसी मंशा है कि वे अध्यात्म को भी एक तकनीक की तरह हासिल करें, जिससे कम समय में ही वे खुद को शांति और अध्यात्म की ओर ले जा सकें।

सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ने ऐसे ही लोगों की चिंता करते हुए दिव्य गुप्त विज्ञान की खोज की। जिसके माध्यम से वह लोगों के अंदर अध्यात्म की नई चेतना जगाकर उन्हें उनकी वास्तविकता का बोध करा रहे हैं। क्योंकि उनका मानना है कि अध्यात्म में ध्यान धारणा तो केवल सद्‌गुरु ही सिखा सकता है और समय का सद्‌गुरु एक ही होता है जो किसी भी दशा में अपने शिष्य़ों को नई दिशा देता है। जिससे वह तनाव मुक्त होकर मन की शांति, निःस्वार्थ प्रेम, व आनंद को प्राप्त हो सकें। यह दिव्य गुप्त विज्ञान से जुड़ी वो मुख्य बातें हैं, जिसकी खोज सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ने की है।।