कबीर से लेकर गुरु हरिकृष्ण साहिब और भगवान बुद्ध से लेकर गुरु नानक साहिब तक आपने कई संत और गुरु भक्तों की कहानी सुनी होंगी। इन्हीं गुरु भक्तों में शेख फरीद भी शामिल है, जो एक मुस्लिम संत थे और बचपन में अल्लाह की भक्ति के बजाए गुरु की खोज को लेकर अपने घर-परिवार को भी त्याग दिए। जप-तप और साधना के माध्यम से अपने गुरु की खोज करने वाले बाबा फरीद का कहना था कि हे कौएं मरने के बाद हर जगह का मांस खाना लेकिन आंखों को छोड़ देना क्योंकि मौत के बाद भी एक सच्चे भक्त की आंखों में उसके गुरु से मिलन की आस रहती है
अहंकारी फरीद को कैसे हुआ फछतावा ?
हर रोज की तरह शाम के वक्त चिड़ियां चहचहाते हुए अपने घोंसलों में लौट रही थी। पूरे वातावरण में खुशी का माहौल था लेकिन इस खुशनुमा माहौल में एक शख्स ऐसा था जो निराश मन से बैठा था। वो इंसान कोई और नहीं बल्कि शेख फरीद थे, जो गहरी सोच में एक कुएं के टीले पर बैठे थे। इसी बीच चिड़ियों का एक झूंड बार बार उनके ऊपर से उड़ रहा था और अपने घोंसले तरफ जा रहा था। फरीद को यह बात नागवार गुजरी, उनको लगा कि ये पक्षी हमारा मजाक उड़ा रही है। तभी उन्होंने उन पक्षियों से खुद को बड़े तपस्वी बताते हुए मरने का श्राप दे दिया। उनके मुख से यह वाणी निकलते ही सभी पक्षी मर कर गिरने लगे। लेकिन इस मृत्यु का नग्न नृत्य देख शेख का हृदय पिघल उठा। वह सोचने लगे कि यह मैंने क्या कर दिया। मां ने मुझे बताया था कि- सारे जीव खुदा के द्वारा ही बनाए गए हैं, किसी को कष्ट देना उचित नहीं है। इसके बावजूद मैं इन्हें मरने का श्राप दे दिया। कुछ देर बाद बाबा फरीद को अपने किए पर पछतावा हुआ और उन्होंने सभी पक्षियों के जिंदा होने का आशीर्वाद दिया। शेख के वरदान से सभी पक्षी जिंदा भी हो गए।
एक लड़की ने फरीद को कैसे दी गुरु भक्ति की सीख ?
पक्षियों के जिंदा करने के बाद शेख फरीद को लगने लगा कि उनके अंदर तप की शक्ति आ गई है। वह खुद को एक बड़े तपस्वी समझने लगे और धीरे धीरे उनका मन अहंकार से भरने लगा। समय जैसे जैसे बीतता गया बाबा फरीद अशांत रहने लगे, शायद उनकी तपस्या उन पर विपरीत प्रभाव डालने लगी। क्योंकि वह घमंडी हो गए थे। अंतत: उन्होंने अपने सद्गुरु की खोज करनी शुरू कर दी। एक दिन शेख यात्रा में थे, और सोच रहे थे क्या मुझे सच्चे रहबर यानी मार्गदर्शक के दर्शन नहीं होंगे। इन्हीं बातों को सोचते सोचते उन्हें जोर से प्यास लगी। वह कुएं के पास पहुंचे जहां एक लड़की पानी निकालती और जमीन पर गिरा देती। इसे देख फरीद ने कहा कि बहन मैं प्यासा हूं। क्या मुझे पानी पिला सकती हो ?
तभी लड़की ने पानी पिलाने की बात कही, हालांकि वह फिर अपने घड़े में पानी भरती और उसे नीचे गिरा देती। इसे देख फरीद ने एक बार फिर से उसे याद दिलाते हुए पानी पिलाने की बात कही। लड़की ने फिर से हां कहा, लेकिन पानी को जमीन पर गिराने लगेगी। ऐसा देख शेख को उस लड़की पर गुस्सा आया और क्रोध में उन्होंने कहा कि-
हे लड़की, तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा? मैं प्यासा हूं और तुमसे पानी मांग रहा हूं लेकिन तुम पानी को जमीन पर गिराए जा रही हो। मैं कोई भीखमंगा नहीं बल्कि एक तपस्वी फकीर हूं
लड़की शेख की बातों को सुन एक बार फिर से पानी को जमीन पर गिराते हुए मुस्कराई और बोलीं- “क्या तुम मुझे जंगल की चिड़िया समझ रहे हो कि तुम्हारे कहने पर मैं मर जाऊंगी” यह सुन शेख फरीद का सारा क्रोध गायब हो गया। वे आश्चर्य से उसे देखने लगे- बाबा फरीद सोचने लगे कि- मैंने इतने दिन तप किया और अहंकार मिला लेकिन यह लड़की इतनी कम उम्र में ही सब कुछ जान गई। आखिर यह कौन-सी साधना करती है ? ऐसा लगता है कि इसे इसके सद्गुरु के दर्शन हो गए हैं।
अतत: शेख प्रसन्नतापूर्वक उस लड़की से पूछते हैं कि –
बहन तुम कौन सी साधना करती हो जिसकी वजह से तुम्हें सबकुछ पता है लड़की नम्रतापूर्वक बोली: “हे फकीर! पहले तुम पानी पिलों, फिर मैं तुम्हारे अंदर की सारी प्यास को शांत करूंगी”
कुछ देर बाद लड़की ने उन्हें समझाते हुए कहा कि- “मैं सद्गुरु से ज्ञान ग्रहण कर अपने पति की मन, वचन, कर्म से सेवा करती हूं। गुरु के आदेशानुसार उन्हीं में परमात्मा का दर्शन करती हूं। इसी से ये सारी सिद्धियां मुझे प्राप्त हुई है। रही बात पानी गिराने की तो यहां से कुछ दूरी पर मेरी बहन रहती है। जिसके घर में आग लग गई है। इस पानी के जरिए मैं उस आग को बुझा रही थी। आप थोड़े देर और प्यासे रह सकते हैं लेकिन वो आग खुद से नहीं बूझ पाती। इसलिए आपको मैंने बाद में पानी पिलाया” पानी गिराने वाली लड़की आगे कहती है कि – “हे फकीर! आप आपने सद्गुरु की खोज कर रहे हैं। इसलिए आप यहां वहां न जाकर सीधे दिल्ली जाइए। जहां आपकी सच्ची श्रद्धा का फल मिलेगा” अतंत: शेख फरीद दिल्ली पहुंचे जहां निजामुद्दीन के फकीर ख्वाजा शरीफ के पास उनके गुरु के दर्शन हुए।