जन्म एवं स्थान :
बचपन से ही आप में विद्या उपासना एवं ध्यान-साधना के लिए विलक्षण प्रतिभा परिलक्षित हुई। विज्ञान, साहित्य एवं क़ानून में उच्च शिक्षा ग्रहण कर, आपने हिमालय के गोमुख, तपोवन, बद्रीनाथ, अलकापुरी, कामाख्या आदि स्थानों में रहकर गहनतम साधनाएं, घोर तप एवं आध्यात्मिक शोध और अनुसन्धान किया। अंत में आप वहीँ पहुंचे जहां से आपकी यात्रा प्रारम्भ हुई थी।
28 वर्ष की आयु में, अपने गुरु स्वामी आत्मादास जी महाराज के चरणों में आप बुद्धत्व को प्राप्त हुए तथा आपने विभिन्न लोकों की अति रोमांचकारी यात्राएं कीं । स्वयं तपस्या और शोध कर, आपने आधुनिक युग के मनुष्य के कल्याण हेतु ‘दिव्य गुप्त विज्ञान’ की सर्वोत्कृष्ट तकनीक का अन्वेषण किया जिससे प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपने दैहिक दैविक-भौतिक तापों का निवारण कर, ध्यान के माध्यम से आनंद की चरम शिखर को प्राप्त हो सकता है। इस धराधाम पर शिव स्वरोदय (स्वर योग साधना) की विधि को आपने मानव कल्याण हेतु पुनः उतारा है तथा उपयुक्त पात्रों को प्रदान कर रहे हैं।