भगवान बुद्ध ने कहा था कि यह संसार दुखों से भरा हुआ है. क्योंकि यहां रहने वाला इंसान हर चीज को खुद में बांधना चाहता है। वह उन वस्तुओं में खुश नहीं जो उन्हें प्राप्त हुआ है। इसलिए सबकुछ मिल जाने के बाद भी वह खुद को अधूरा ही समझता हैं।
भगवान बुद्ध की इन बातों का सार लिखते हुए सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज इसे गुलामी से देखते हैं। वह अपनी पुस्तक बुद्धों का पथ में लिखते हैं कि। स्वतंत्रता को लेकर सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि आप एक आजाद मुल्क में घूम रहे हो और अपनी इच्छा के हिसाब से कुछ भी कर रहे हो। वह स्वतंत्रता की परिभाषा नहीं है। बल्कि सही मायने में आजादी का संबंध आपकी इंद्रियों से होता है। जो आपके मन से जुड़ा होता है। दरअसल, अपने मन को कंट्रोल करके अपनी इंद्रियों का स्वामी बन जाना ही स्वतंत्रता है। जो मोक्ष, निर्वाण और परमसिद्धि की ओर ले जाता है लेकिन यह स्वतंत्रता प्राप्त होती है उन सिद्धियों से जिसमें स्वयं सिद्ध के साथ वंश सिद्ध, वचन सिद्ध और साधना सिद्ध भी शामिल है।
क्या होता है स्वयं सिद्ध ?
स्वयं सिद्ध वह इंसान होता है जो शून्य स्थिति को प्राप्त कर गया है। उसके अंदर अपने भक्तों, शिष्यों और सगे-संबंधियों के बंधन से मुक्त होने की चाहत उठ रही होती है। वे अपनी सांसारिक कामना से भी दूर रहना चाहता है। वहीं सांसारिक वासना में फंसा व्यक्ति अपना दोष गुरु पर डालकर, उनसे अलग हो जाता है। वह लोगों के सामने अपने गुरु की लीला के बजाय सामने खुद को प्रचारित करता है। लेकिन स्वयं सिद्ध को प्राप्त व्यक्ति खुद के बजाय गुरु की लीला को समाज के सामने बताता। वह जानता है कि सही राह दिखाने के लिए एक सद्गुरु अपने परमप्रिय भक्त का सभी कुछ हरण कर लेते हैं। सबसे पहले वह उसके अहंकार से जुड़ी वृत्तियों खत्म करते हैं। इसके बाद उसको आत्म मोक्षार्थ की ओर ले जाते हैं।
वंश सिद्ध से कैसे मिलती है आजादी ?
स्वतंत्रता प्राप्त करने वाली कड़ी में वंश सिद्ध भी आता है। जिसकी सिद्धी स्वयं सिद्ध के बिना संभव नहीं हो सकती। दरअसल जो साधक स्वयं सिद्ध होते हैं, उनसे अति असाधरण आत्माएं ही सिद्ध हो जाती है। इन्हें आप राहुल और कमाल के संदर्भों में समझ सकते हैं।
असल में वंश सिद्ध एक पिता से उसके पुत्रों में होने वाली सिद्धी को परिभाषित करती है। जिसमें बुद्ध से मिली राहुल को सिद्धी, कबीर के जरिए कमाल को सिद्धी, नानक से मिली श्री चंद जी को मुक्ति, राम से लव-कुश और श्री कृष्ण से मिली प्रद्युम्न जी को सिद्धी शामिल है। वहीं भगवान कृष्ण को भी वंश सिद्ध के माध्यम से गीता में मुक्त बताया गया है। सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज इन बातों को बताते हुए कहते हैं कि-
मेरी मान्यता है कि मुक्त आत्माएं सदैव मुक्त मां-बाप के माध्यम से ही संसार में आती हैं। क्योंकि उनके प्रकाश को सभी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। इसलिए वंश सिद्ध तेजवान मां-बाप से उनके तेजवान पुत्रों में स्थानांतरण होता है। यदि यह सिद्धी सबको मिलनी होती है तो राम के जरिए रावण या श्री कृष्ण के जरिए कंस को ही प्राप्त हो जाती।
वचन सिद्ध से कैसे मिलती है स्वतंत्रता ?
स्वतंत्रता प्राप्त करने की श्रेणी में तीसरा वचन सिद्ध आता है। जो पूर्णत: गुरु अनुकंपा का परिणाम है। आप अधिकतर “मोक्ष मूलं गुरु कृपां” की कथन सुनते होंगे। असल में यह वाक्य वचन सिद्ध के लिए समर्पित है, जो यह बतलाता है कि किसी भी शिष्य को गुरु की सेवा तन-मन-धन से निष्काम योग की तरह करनी चाहिए। उसकी अपनी कोई कामना नहीं होनी चाहिए है। गुरु की कामना ही उसकी कामना और गुरु की इच्छा ही उसकी इच्छा होनी चाहिए। जो इंसान वचन सिद्ध को प्राप्त होता है। उसे उठते-बैठते, सोते जागते गुरु ही दिखाई पड़ने लगते हैं और फिर एक दिन ऐसा आता है जब उसके गुरु खुद कहते हैं कि अब तुम्हारी सिद्ध होने की बारी आ गई है।
आजादी दिलाने में साधन सिद्ध की क्या भूमिका है ?
स्वतंत्रता प्राप्त करने वाली कड़ी में अंतिम सिद्ध साधन सिद्ध होता है। जिसे साधना सिद्ध को अध्यात्म में पिपलिका मार्ग भी कहा जाता है। इस सिद्धी को प्राप्त करने वाले इंसान को अपने जन्मों की स्मृति बनी रहती है। वह माया के बंधन में कभी नहीं बंधते और उनकी यात्रा अनंत सफर वाली होती है। क्योंकि वह अपने गुरु और मां-बाप के दिखाए मार्गों पर चलकर मोक्षार्थ की ओर बढ़ने लगते हैं। सद्गुरु इन सिद्धियों के बारे में बताते हुए कहते हैं-
“जो इंसान इन चार सिद्धियों को प्राप्त हो जाता है। वह अपने उद्देश्य के पक्के हो जाते हैं। इन्हें अपना-पराया न तो सम्मोहित कर पाता है और न ही किसी बंधन के जाल में बांध पाता…”
तो यह मन की गुलामी से बचकर खुद को आजाद करने को लेकर कुछ सिद्धियों के सार है.. जिसे सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ने अपनी पुस्तक बुद्धों का पथ में बखुबी बताने की कोशिश की है।