सनातन को लेकर ऐसा कहा जाता है कि यह एक शाश्वत सत्य है जो इस संसार में हमेशा बना रहेगा। लेकिन क्या आपको पता है कि सनातन धर्म की उत्पति कहां से हुई। आखिर वो महान गुरु कौन थे जिन्होंने सनातन की नींव रखने का काम किया। आज हम आपको एक ऐसे ऋषि के बारे में बताएंगे, जिनकी वजह से आज पूरी दुनिया में सनातन धर्म अपने चरम पर पहुंचा है।
सनातन की नींव रखने वाले ऋषि का क्यों हुआ मोहभंग ?
सनातन की इस संसार में नींव रखने वाले ऋषि कोई और नहीं बल्कि सप्तऋषियों में से एक ऋषि कश्यप है। जिसके बारे में बताते हुए सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज अपनी पुस्तक स्वर से समाधि में लिखते हैं कि-
“ऋषि कश्यप के बिना भारतीय पुराण अधूरा कहलाएगा क्योंकि देव, दानव, नाग, गंधर्व, किन्नर सभी पर इनका समान अधिकार था। सभी को उन्होंने भारतीय अध्यात्म से परिचित कराया। ऋषि कश्यप युवावस्था में ही अपने राज्य का त्याग कर अवंद पर्वत पर तपस्या करनी शुरू कर दिए थे। वह लोगों में समान शिक्षा, संस्कृति और अध्यात्म का प्रचार भी किए। हालांकि कुछ बुद्धिजीवियों ने उन्हें नाग, पक्षी, राक्षस और देव जैसी जातियों में भी बांटा है क्योंकि उनके द्वारा सभी को स्वरोदय का ज्ञान देकर आत्मबोध कराने का कठोर तप शुरू किया गया था। जिसे देख अच्छे लोगों में जहां उत्साह हुआ तो वहीं दुष्ट जन उनका विरोध करने लगे। अतंत: कश्यप का अपने यौवनावस्था में ही संसार से मोह भंग हो गया और उन्होंने अपने राजपाट को छोड़ने का मन बना लिया“
ऋषि कश्यप को विवाह के लिए किसने राजी किया ?
सांसारिक भोग-वृत्ति और राजपाट से अलग होकर युवा कश्यप एक आश्रम में रहने लगे। धीरे धीरे उनका आश्रम बड़ा होता गया, जिसे कश्यप सागर कहा गया वहीं जिस पर्वत पर बैठकर उन्होंने तप की थी वो काकेशत पर्वत कहलाया। जो वर्तमान के ईरान में है। ऋषि की ख्याति धीरे धीरे बढ़ती गई और उनके पिता मारीचि तक जा पहुंची जिसे सुन वह काफी प्रसन्न हुए। इसके बाद ऋषि मरीचि ने कश्यप से विवाह करने का आग्रह किया। इसको लेकर ऋषि मरीचि ने उनको समझाते हुए कहा कि-
“तुम्हारे विवाह में कोई अड़चन नहीं है। विवाह के बाद एक ओर तुम्हारी पत्नी तुम्हारे सद्कर्म में मदद करेगी तो वही दूसरी ओर तुम्हारे पुत्र तुम्हारे कार्य को आगे बढ़ाएंगे” पिता की बातों को सुन ऋषि कश्यप शादी के लिए तैयार हो गए ।
ऋषि कश्यप को कैसे बदनाम करते हैं कुछ तार्किक लोग ?
सद्गुरु आगे बताते हैं कि उस समय दो ही प्रजापति थे, मारीच और दक्ष। ये दोनो ही पूरे संसार के राजा थे। प्रजापति दक्ष को कश्यप से जुड़ी जानकारी मिल गई थी। इसलिए उन्होंने बिना किसी संकोच अपनी बड़ी कन्या दीती से कश्यप की शादी करा दी। दीती ने अपने पत्नी धर्म को निभाते हुए ऋषि कश्यप के काम को आगे बढ़ाया। हालांकि कुछ समय बाद ऋषि कश्यप दक्ष के साथ ही रहने लगे। इसलिए प्रजापति ने अपनी बाकी बेटियों की भी शादी उनसे करा दी।
इसको लेकर कुछ पुराणों में ऐसा जिक्र मिलता है कि इन्हीं कन्याओं से दैत्य, दानव, देवता, नाग, गरूड़ और पक्षियों ने जन्म लिया। जो सभी अपनी-अपनी मां के साथ अलग-अलग रहने लगे और भिन्न- भिन्न राज्यों की स्थापना भी की। लेकिन सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज इन व्याख्याओं का तर्क देते हुए इसे ऋषि कश्यप को बदनाम करने वाला बताते हैं। वह कहते हैं कि- “ऋषि कश्यप के गुरु अग्नि थे, जिन्होंने उन्हें स्वर रूपी अग्नि का ज्ञान कराया, जिसे वह पृथ्वी पर समभाव से फैला रहे थे’’
पृथ्वी पर कैसा हुआ सनातन का विस्तार ?
अपने गुरु के ज्ञान को फैलाने के लिए ऋषि कश्यप मे पूरी पृथ्वी को तेरह भागों में बांटा। उन तेरह भागों पर धर्म प्रचार के लिए अपनी तेरह पत्नियों को भेजा और वह सभी अलग-अलग जगह पर अपना आश्रम बना कर लोगों को शिक्षित करने लगीं। इस तरह कश्यप का धर्मरूपी परिवार बढ़ने लगा। हालांकि कुछ समय बाद ऋषि ने अपनी पत्नी और शिष्यों को अपना नाम बताने से मना कर दिया। वह लोग दल बनाकर गांव-गांव जाने लगे। लोगों को नवचेतना का संदेश देने लगे। जब उनसे कोई पूछता कि आपको किसने भेजा है। तब उनके दूत केवल मौन होकर मुस्कुरा देते और मुझे ज्ञात नहीं है के जरिए सारे सवालों के जवाब देने की कोशिश करते।
इस तरह कश्यप की विद्या और लोकप्रियता दिन-दुगनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। उनका तेज इस कदर हो गया कि यह सारी पृथ्वी उनके यश से भर गई। धीरे धीरे सभी लोग अपने को कश्यप का पुत्र कहने लगे। जिसे अपने गोत्र का पता नहीं चलता वह खुद को कश्यप गोत्र बता देता। अतंत: पूरा संसार कश्यप ऋषि के शिष्यों और अनुयायियों से समाहित हो गया और फिर जगह-जगह विद्यालयों की स्थापना भी होने लगा।
ऋषि कश्यप को लेकर क्या कहते हैं सद्गुरु ?
अपनी पुस्तक स्वर से समाधि में इन बातों का जिक्र करते हुए सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज कहते हैं कि सनातन की नींव रखने के पीछे कोई और नहीं बल्कि ऋषि कश्यप है। जिन्होंने पूरे संसार में धर्म के प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया। यही वजह है कि ऋषि कश्यप को भारतभूमि का पिता कहा जाता है। जिसे पुराणकारों ने विष्णु का अवतार भी घोषित किया है।