सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की कैसे हुई संत कबीर से मुलाकात ?

अध्यात्म, साधना, परम ऊर्जा और त्रिनेत्र के भाव प्रसंगों का नतीजा है शिवनेत्र। जिसमें सद्गुरु के द्वारा उन बातों का विस्तृत पूर्वक वर्णन किया गया है। जो किसी भी इंसान के अंदर मौजूद तो है, लेकिन वो उस परम ऊर्जा की पहचान नहीं कर पा रहा है। जो उसे ब्रह्मांड के केंद्र में ले जाकर शिव के समान साधक बनाती है। आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाएंगे, जो एक सच्चे शिष्य की सच्ची गुरु भक्ति के फल से जुड़ी हुई है।

सद्गुरु ने कैसे किया गुरुलोक में प्रवेश ?

यह कहानी है सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की संत कबीर से भेंट को लेकर- दरअसल, साल 2007 में घटी एक घटना को याद करते हुए सद्गुरु शिव नेत्र में लिखते हैं कि “मैं रात के वक्त एक गुफा में विश्राम कर रहा था, तभी मुझे एक शिष्य की याद आई जो जेल में सजा काट रहा था। इसी बीच मेरा ध्यान मेरे गुरु में लग गया, उन्होंने मुझसे कहा- “तुम चिंता मत करों. मैं तुम्हारे शिष्य को जरूर रिहा करा दूंगा”। गुरुदेव के ध्यान से निकलने के बाद मैं इस बात पर चिंता करना छोड़ दिया। ठीक दो दिनों बाद मैं फिर से गहरे ध्यान में चला गया। मुझे ऐसा आभास हुआ कि, एक दिव्य पुरुष मुझे अपनी ओर बुला रहे हैं। चूंकि ऐसी यात्राओं का मैं कई बार अनुभव कर चुका था। लेकिन ये उन सबसे अलग थी, मेरी चेतना केंद्र विराम में था, मैं इस दौरान कुछ नहीं कर रहा था। केवल सवारी की तरह इस यात्रा को देख रहा था। तभी मुझे एक सागर दिखाई दिया। जिसका रंग पारदर्शी था। उसमें कई रंगों के कमल खिले थे और हंस तैर रहे थे। इनमें से दो हंस उड़कर मेरे समीप आए और अचानक से एक सुंदर युवक और युवती में तब्दील हो गए। उनका शरीर पारदर्शी लग रहा था। मैं कुछ कह पाता, तभी उन्होंने मुस्कुराते हुए बोला- “हे गुरुदेव ! गुरुलोक में आपक स्वागत है”

गुरुलोक में सबसे पहले किससे मिले सद्गुरु ?

गुरुलोक को देख मैं आश्चर्य में पड़ गया था। वहां के सागर, वहां की पुष्पें और वहां के वातावरण मुझे मोहित कर ली थी। मैं आगे बढ़ता जा रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था,  कि मैं कहां जा रहा हूं। इसी बीच मेरे साथ चल रहे हंसों ने अचानक से मुझे रोक दिया और कहा कि, “अब हम आपको आपकी असली जगह पर ला दिए हैं” मेरे सामने एक बहुत बड़ा पर्वत दिखाई दिया, मैंने उनसे पूछा यह कौन सा लोक है, जंगल लोक या जादुई लोक तभी मेरे पीछे से आवाज आई- गुरुलोक

इस बात को सुन मैं ऊपर की ओर चढ़ने लगा। पर्वत पर तमाम तरह के पेड़ दिखाई देने लगे। रंग-बिरंगे फूलों के साथ अदुभुत नजारें दिख रहे थे। इस दौरान मुझे ऐसे पेड़ भी दिखाई दिए जो खुद से चल रहे थे। उनकी जड़ें दिखाई दे रही थी। इस लोक पर इतनी शांति थी, कि एक पत्ते भी पेड़ से गिर जाते तो उसकी आवाज सुनाई देने लगती थी। इन्हीं मनमोहक ध्वनियों के बीच एक और मधुर आवाज सुनाई दी जो एक स्त्री थी। मैंने उनकी बातों को सुन उनसे उनका परिचय पूछा- उस स्त्री ने अपना नाम मीरा बताया। मैं मीरा से गुरुलोक को लेकर वार्तालप किया। उन्होंने मुझे इस लोक के बारे में बताते हुए देवी लोक,  शिव लोक, विष्णु लोक, ब्रह्मा लोक, पितर लोक और मानव लोक के बारे में भी बताया।

सद्गुरु से पृथ्वी लोक के बारे में क्या बोलीं मीरा ?

मीरा ने पृथ्वी लोक के बारे में बताते हुए अपदेवताओं को भी परिभाषित किया। जो न तो परिवार के लिए शुभ होते हैं और न ही समाज के लिए। ये ऐसे लोग होते हैं, जो खुद धार्मिक गुरु बन जाते हैं और स्वयं को स्वयंभू समझकर अपने साम्राज्य का विस्तार करने लगते हैं।

मीरा अपनी बातों को समाप्त करने के बाद सद्गुरु को एक रहस्यमय प्रकाश दिखाती है। जो अंडकार था और ऐसा प्रतीत हो रहा था, कि सारी श्रृष्टि को इसी ने अपने आकर्षण से नियंत्रित किया है। इसे देख सद्गुरु की आंखे खुली की खुली रह गई। तभी मीरा उन्हें उस जगह पर ले गई, जहां पहुंचने के बाद स्वामी कृष्णानंद जी महाराज को सारी तपस्या का फल प्राप्त हो गया था।

गुरु लोक में दो हंसों के जरिए मीरा मिलती है और यही मीरा सद्गुरु को उनके गुरुदेव कबीर दास से मिलवाती है। संत कबीर से हुई मुलाकातों को याद करते हुए सद्गुरु लिखते हैं कि—

संत कबीर ने सद्गुरु को कैसा रहस्य बताया ?

“देवी मीरा के साथ मैं उस अंडकार रहस्यमयी प्रकाश लोक में गया। जहां अर्ध्दचंद्राकार आकार से एक तेजोमय इंसान बाहर निकलते हैं। मुझे यह एहसास हो गया कि, यही मेरे गुरुदेव हैं। मैं उनके चरणों में गिर गया, कब तक गिरा रहा नहीं पता चला। तभी मेरे सिर पर उस महान आत्मा के हाथ गए और उन्होंने मुझे उठाते हुए कहा कि- ‘वत्स यही मेरी दुनिया है, जहां न तो तुम्हारा वायुयान पहुंच सकता है और न ही रोकेट । कोई पहुंच सकता है तो एक श्रद्धावान इंसान, जो अपने गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा रखता हो’ अंत में स्वामी कृष्णानंद जी महाराज संत कबीर से पूछते हैं कि… गुरुदेव! क्या आप हमेशा इसी रूप में रहते हैं?

संत कबीर कहते हैं कि- “देखो मेरा कोई अपना रूप नहीं है, क्योंकि पृथ्वी पर मेरा कोई शरीर ही नहीं मिला। जब किसी इंसान का शरीर ही नहीं है तो उसके रूप का निर्धारण कैसे हो सकता है?  आपकी पृथ्वी पर सबके पास घर है, लेकिन यहां पर कोई घर नहीं है। कोई संप्रदाय नहीं है, कोई धर्म नहीं है बल्कि हम लोग अरूपी है और कई रूपों में कई लोकों में जाते रहते हैं”