मनन जिसे करने से लक्ष्य मार्ग में कोई अड़चन नहीं आती। मनन जिससे भगवान शिव प्रतिष्ठा के साथ प्रगट होते हैं, और वो मनन जिसके जरिए गुरु नानक ने धार्मिक संबंध का रास्ता बताया है।क्या यह मनन और कैसे होगी इससे मोक्ष द्वार की प्राप्ति ?
मनन को लेकर क्या कहते हैं सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज ?
मनन के बारे में बताते हुए सद्गुरु गुरु नानक की वाणी का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि- “शिवाजी के सेनापति भामलेकर ने मुगल सरदार बहलोल खां को युद्ध में परास्त कर दिया था। इस युद्ध में मिली जीत के बाद भामलेकर ने मुगल सरदार की पत्नी का अपहरण कर लिया और ऐसा करकर वो खूब प्रसन्न था। उसे लग रहा था कि, जैसे मुगलों ने औरतों का अपहरण कर उनसे एक वस्तु समान व्यवहार किया है। वैसे ही हम बहलोल खां की पत्नी के साथ करेंगे।
सेनापति भामलेकर इसी सोच के साथ शिवाजी के दरबार में एक डोली लेकर पहुंचा, जिसमें मुगल बादशाह की औरत कैद थी। शिवाजी ने अपने दरबार में रखी डोली का पर्दा हटाया और उस स्त्री को देख अति सुंदर का उद्घोष किया। ऐसा सुन भागलेकर का खुशी का ठिकाना न रहा… वो सोचने लगा कि उसे आज कीमती पुरस्कार मिलेगा। लेकिन कुछ समय में ही वो चौंक गया। दरअसल, एक स्त्री की सुंदरता की तारीफ करते हुए छत्रपति शिवाजी ने लंबी सासं लेकर कहा कि-
“मुझे खेद है कि, मैं आपकी कोख से पैदा नहीं हुआ। यदि मैं आपकी कोख से पैदा हुआ होता तो मेरी सुंदरता भी आपकी जैसी होती। आप मेरी मां तुल्य हैं। हे मातेश्वरी! आप मेरे सेनानायक को इस अपराध के लिए क्षमा करें”
बेगम साहिबा जो अब तक डरी हुई थी, इन बातों को सुन वह अपनी पालकी से बाहर निकली और दुआ देते हुए बोलीं-
“अल्लाह ताला आप हमेशा बुलंदी पर रहें”
इसके बाद शिवाजी ने अपने माता तुल्य बेगम साहिबा को बहलोल खां के पास पहुंचाने का आदेश दिया। छत्रपति के ऐसे कार्य को देख दरबार उनके नाम के जयकारों से गूंज उठा। सबने एक स्वर में कहा कि- वीर वही जो नारी की मर्यादा की रक्षा करता है।“
संयम को लेकर ‘सद्गुरु’ ने एक ओंकार में क्या लिखा है ?
सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज अपनी पुस्तक एक ओंकार में इन बातों को लिखते हुए संयम के बारे में बताते हैं- वह गुरु नानक के प्रसंगों का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि संयम शब्द जितना अच्छा है उतना खतरनाक भी, आज अधिकतर नेता, अधिकारी और साधुजन वस्त्र, बातचीत और वेशभूषा में अत्यंत संयमी दिखते हैं। उन्हें इससे पद प्रतिष्ठा भी मिलती है। लेकिन इन्हीं लोगों में से अधिकतर का एकांत के अंधेरे में संयम का बांध टूट जाता है। राक्षस वृति भी उनके सामने कभी कभी नतमस्तक हो जाती है। क्योंकि सार्वजनिक मंचों पर उनका चेहरा दिखता कुछ और है लेकिन वास्तव में वे होते कुछ और है। इसी संयम को लेकर गुरु नानक कहते हैं कि-
“यह किसी समस्या का समाधान नहीं है, समाधान तो सुरति है। संयम करने वाला व्यक्ति हर समय झगड़े के बारे में सोचता रहता है। यदि झगड़े से जुड़ा संयम का बांध टूट जाए तो इंसान एक दूसरे को काटने मारने के लिए तैयार हो जाता है। हालांकि इसपर नियंत्रण करने वाला इंसान इस प्रकार की लड़ाई को रोकने में कुछ हद तक कामयाब भी हो जाता है।
वास्तव में देखा जाए तो- संयम का एक ही अर्थ है किसी तरह संभाल कर रखों। यदि किसी इंसान का मन इस पर भारी पड़ने लगता है तो फिर सारी धैर्यता टूट जाती है और वो व्यक्ति हर एक बुरा काम भी करना शुरू कर देता है। जिसको करने से वो बचता आ रहा था।
पुस्तक एक ओंकार में मनन को लेकर क्या लिखते हैं सद्गुरु ?
एक ओंकार में मनन को लेकर सद्गुरु लिखते हैं कि गुरु नानक ने बताया है कि मनन से ही भगवान शिव प्रगट होते हैं। जब सिख स्तुति में लगे रहते हैं, उसी दौरान उनके केंद्र में एक दिन ऐसा आता है। जब भगवान खुद प्रगट होते हैं। यह अवतरण ठीक वैसे ही होता है, जैसे बुद्ध के दौरान हुआ था। जिस प्रकार बुद्ध के जन्म के समय सूर्य रुक गए थे। फूलों की वर्षा होने लगी थी और हर जगह वसंत जैसे दृश्य दिखाई देने लगे थे। वैसे ही मनन करने से परमात्मा का अद्भुत आगमन होता है।
मनन से जुड़े इस अध्याय के अंत में सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज कहते हैं कि आज का धर्म बाहरी दिखावे में फंस कर रह गया है। हम किसी संप्रदाय के पुस्तकों का पाठ कर लेते हैं, पत्थर की मूर्ति पर जल चढ़ाकर उसकी आरती कर देते हैं। इस प्रकार के कार्यों को हमने धर्म समझ लिया है। हालांकि ये इंसानों के मुढ़ता का प्रतीक है। जिसे गुरु नानक ने विरोध किया था।