हमारा देश भारत अपनी विविधिताओं के जरिए कई तरह की कहानियों को समेटे हुए हैं। इसमें हिंदुस्तान को बंटने से लेकर लूटने तक और मंदिर-मस्जिदों को बनने से लेकर ढहने तक कई किस्सें शामिल है। इन्ही वृतांतों में एक कहानी सोमनाथ मंदिर से जुड़ी हुई है। जिसे मोहम्मद गजनवी के द्वारा लूटा गया था। लेकिन गजनवी के इस काम को सफल बनाने में सोमनाथ मंदिर में रहने वाले एक लालची पंडित का भी हाथ था। जिसने लालच में आकर अपने ही समाज को धोखा देने का काम किया।
जब सोमनाथ मंदिर पर गजनवी ने किया हमला –
मोहम्मद गजनवी, एक हजार ईस्वी से ही कई देशों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिलती थी। हालांकि बार– बार असफल होने के बावजूद भी वह हिम्मत नहीं हारा और साल 1026 के दौरान सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। उसके आक्रमण को देख कुछ राजाओं ने उसे रोकने का प्रयास तो किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाएं। एक मुस्लिम सुल्तान के आक्रमण से बड़े बड़े राजा सहमे हुए नजर आ रहे थे। लेकिन इन सबमें एक शख्स ऐसा था जिसको अपने परमात्मा पर भरोसा था। दरअसल गजनवी के आक्रमण के दौरान जब कई राजा डरे हुए थे। उसी दरमियान सोमनाथ मंदिर के एक पुजारी का कहना था कि –
“जब सबकी रक्षा भगवान शंकर करते हैं, तो उनकी रक्षा करने की हिम्मत कौन कर सकता है” जैसे ही मोहम्मद गजनवी मंदिर के निकट पहुंचा। वैसे ही वहां मौजूद राजाओं ने उसे घेर लिया। औरतों ने भी तलवार निकाल ली। ऐसी स्थिति को देख मंदिर के एक महंत ने कहा कि- “तुम लोग क्यों इस दुष्ट के साथ लड़ रहे हो, इसे भगवान खुद भस्म कर देंगे”
गजनवी को किसने बताया सोमनाथ मंदिर से जुड़ा राज ?
सोमनाथ मंदिर अपार संपत्ति और हीरे- जवाहरात से भरा पड़ा था। चारों तरफ खाई थी जो जल से भरी थी। गजनवी के आक्रमण को देखते हुए राजपूत समाज के लोग भी अपने अस्त्र- शस्त्र के साथ उसकी सेना पर हमला करने की योजना बनाने लगे। हालांकि सोमनाथ की रक्षा करने आए लोगों के उत्साह को देख गजनवी हिम्मत हार गया था। क्योंकि उसके सैनिकों की रसद समाप्त होने वाली थी। अंत में ऐसी स्थिति बनी कि वह भागने के लिए भी तैयार हो गया। लेकिन वह अपनी जान बचाकर मंदिर से भागता तभी एक लालची पंडित ने अपने स्वाभिमान को बेचते हुए ऐसा राज बताया। जिसके बारे में कुछ लोग ही जानते थे।
दरअसल, मन्दिर में एक सुरंग थी जो सीधे बाहर जंगलों में खुलती थी। यहां गजनवी अपने सैनिकों के साथ डेरा डाल रखा था। इसका भेद सिर्फ वहां के पुजारी ही जानते थे। आधी रात में एक पुजारी इसी गुप्त रास्ते से उसके पास जा पहुंचा, जिसे देख गजनवी आश्चर्य में पड़ गया। गजनवी कुछ कह पाता कि तभी उस पुजारी ने कहा कि- “महाराज मैं मन्दिर का पुजारी हूं. मैं जानता हूं कि आप मन्दिर में प्रवेश करना चाहते हैं, लेकिन मेरे सहयोग के बिना यह सम्भव नहीं है”
पुजारी ने आगे कहा कि- “यदि आप मंदिर में प्रवेश करना चाहते हैं तो आपको मुझे एक वचन देनी होगी” गजनवी पुजारी की बातों को सुन प्रसन्न मन से बोला- “पण्डित जी! आप जो कहेंगे वही मानूंगा” पंडित ने अर्ज करते हुए कहा कि- “जब आप सोमनाथ मंदिर की गद्दी पर बैठना तब आप मुझे प्रधान पुजारी नियुक्त कर देना” गजनवी और पंडित एक दूसरे की बातों से सहमत हो गए। वह खुशी-खुशी अपने सैनिकों के साथ मन्दिर में प्रवेश कर गया।
गजनवी ने क्यों कर दी राज बताने वाले ब्राह्मण की हत्या ?
मंदिर में घुसने के कुछ समय बाद पीछे से हमला करते हुए गजनवी वहां मौजूद राजाओं और उनकी सेना को मार गिराया । अंतत: वह सोमनाथ मंदिर को लूटने में कामयाब हो चुका था। अब बारी रास्ते का भेद बताने वाले पंडित को प्रधान पुजारी नियुक्त करने को थी। पंडित खुशी मन से गजनवी की ओर आरती की थाली लेकर बढ़ा, तभी उसने अपने घोड़े पर बैठे-बैठे पुजारी को टांग लिया। उसकी लंबी चोटी को काटते हुए गजनवी ने कहा कि-
“जो अपनों का नहीं हुआ वह मेरा कैसे हो सकता है. तू धूर्त और अवसरवादी है. मेरे अल्लाह इसे स्वीकार करों”
अपनों के साथ धोखा देने वाले दुष्ट पंडित की कटी हुई गर्दन मोहम्मद गजनवी के हाथों में थी। इसी बीच उसकी नजर एक शिवलिंग पर पड़ी। जो चार खंभों के बीच में स्थापित थी और चमक रही थी। गजनवी उस चार खंभों को देख समझ गया कि यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि मैग्नेट का सिद्धांत है। यानी ये चारों खंभे किसी चमत्कार से नहीं बल्कि इसमें मौजूद हीरे – जवाहरात से चमक रहे हैं। उसने बिना देरी किए खंभों को तोड़ना शूरू किया और बेशकीमती हीरो व गहनों को अपने साथ लेकर अपना देश चला गया।